
Share0 Bookmarks 15 Reads0 Likes
जिम्मेदारियों बढ़ती गईं
कंधे झुकते गए
बोझ उठाते उठाते
जिस्म भी पथरा गए
ग़म और खुशी के फर्क
हौले हौले मिट गए
रूह मर मरके जिंदा रही
जिस्म आते जाते रहे ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
जिम्मेदारियों बढ़ती गईं
कंधे झुकते गए
बोझ उठाते उठाते
जिस्म भी पथरा गए
ग़म और खुशी के फर्क
हौले हौले मिट गए
रूह मर मरके जिंदा रही
जिस्म आते जाते रहे ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments