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उग आईं हैं बस्तियाँ
झील के किनारों पर
बजने लगीं हैं घंटियाँ
मंदिर शिवालयों पर
झील सी आँखों में तैरती
ख्वाबों की कश्तियाँ
लौट आती हैं अक्सर
करके यहाँ मस्तियाँ ।
मं शर्मा (रज़ा)
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उग आईं हैं बस्तियाँ
झील के किनारों पर
बजने लगीं हैं घंटियाँ
मंदिर शिवालयों पर
झील सी आँखों में तैरती
ख्वाबों की कश्तियाँ
लौट आती हैं अक्सर
करके यहाँ मस्तियाँ ।
मं शर्मा (रज़ा)
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