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तुम संग की थीं
जितनी मुलाकातें
बहकी बहकी सी
कितनी वो बातें
इन जाते हुए
लम्हों की खातिर
क्यों न मिटा दें
वो बीती बातें ।
मं शर्मा( रज़ा)
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तुम संग की थीं
जितनी मुलाकातें
बहकी बहकी सी
कितनी वो बातें
इन जाते हुए
लम्हों की खातिर
क्यों न मिटा दें
वो बीती बातें ।
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