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इश्क में यूँ लाखों फसाने हुए
यूँ ही नहीं हम दीवाने हुए
खुद से मिले एक अरसा हुआ
जाने कहाँ तेरे ठिकाने हुए
जरा सी बात ढेरों मसले हुए
दरम्यां फासले बढ़ते ही रहे
एकदिन इश्क के पंछी आज़ाद हुए
टूटे रिश्तों के किस्से पुराने हुए।
मं शर्मा( रज़ा)
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