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दिलोदिमाग में छिड़ी जंग है

जीत हार का अजब प्रसंग है

दिल कोमल और सह्रदय है

दिमाग तार्किक और निष्ठुर है


दोनों ही स्वतः यथोचित हैं

मन भ्रमित बड़ा विचलित है

दोनों में सुलह कराऊँ कैसे

जीवन में सामंजस्य बिठाऊँ कैसे।


मं शर्मा (रज़ा)


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