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मन की उदासी में
एक मुस्कान उगाई न गई
आखिरी उम्मीद थी
जाने क्यों जगाई न गई
ज़रा सी दरार थी
वक्त रहते भराई न गई
भरभराती गिरीं बुनियादें
जाने क्यों बचाई न गईं।
मं शर्मा (रज़ा)
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मन की उदासी में
एक मुस्कान उगाई न गई
आखिरी उम्मीद थी
जाने क्यों जगाई न गई
ज़रा सी दरार थी
वक्त रहते भराई न गई
भरभराती गिरीं बुनियादें
जाने क्यों बचाई न गईं।
मं शर्मा (रज़ा)
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