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जाने फिर कब बरसे बादल

धरती की प्यास बुझाने को

भीग जाने दो अपने तन मन

धुलने दो क्लेश विकारों को


आँसुओं से धोये थे जो गम

उन्हें धो लेने दो बौछारों को

आँसुओं को बचा रखो तुम

मत व्यर्थ गँवाओ बेचारों को।


मं शर्मा (रज़ा)

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