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हद से लंबा इंतज़ार
खत्म कभी हुआ नहीं
साँसों की एक डोर थी
हाथों में टिकी नहीं
मैं ही चूका था कि
अवसर ही मिला नहीं
किससे हुई खता
पता भी चला नहीं ।
मं शर्मा (रज़ा)
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हद से लंबा इंतज़ार
खत्म कभी हुआ नहीं
साँसों की एक डोर थी
हाथों में टिकी नहीं
मैं ही चूका था कि
अवसर ही मिला नहीं
किससे हुई खता
पता भी चला नहीं ।
मं शर्मा (रज़ा)
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