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जब से तुम बसे ह्रदय में
नयनों ने निंदिया है खोई
जित देखूँ तुम ही तुम हो
हर ओर तेरी सूरत लखाई
तन की सुध न जग का डर है
ह्रदय मेघ झरें चारों पहर है
जबसे तुम सिधारे कान्हा
दूर देस जाने कौन नगर है।
मं शर्मा (रज़ा)
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