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गुनाहों का हिसाब क्यूँ रखता फिरूँ
जीने की जद्दोजहद आज भी जारी है
मरने से पहले ही कैसे जीना छोड़ूँ
आज मेरी नहीं इसकी उसकी बारी है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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गुनाहों का हिसाब क्यूँ रखता फिरूँ
जीने की जद्दोजहद आज भी जारी है
मरने से पहले ही कैसे जीना छोड़ूँ
आज मेरी नहीं इसकी उसकी बारी है ।
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