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अनगिनत गम हैं जीवन में
अब हिसाब न कोई रखता हूँ
घर से जब भी बाहर निकलूँ
मुखौटा पहन कर चलता हूँ
दुनिया की नहीं परवाह मुझको
खुद से मुँह छिपाता फिरता हूँ
सामना न होवे खुद से मेरा
एक आईना न घर में रखता हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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