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आज दिन भर चली
कौन सी हवा थी
ज़ख्म हरे कर गई
कौन सी दवा थी
इन हवाओं का अब
कोई ऐतबार नहीं
कब मचल उठें खींचलें
पाँव तले ज़मीं।
मं शर्मा(रज़ा)
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आज दिन भर चली
कौन सी हवा थी
ज़ख्म हरे कर गई
कौन सी दवा थी
इन हवाओं का अब
कोई ऐतबार नहीं
कब मचल उठें खींचलें
पाँव तले ज़मीं।
मं शर्मा(रज़ा)
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