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हँसाता रूलाता रहा
चर्चाओं में आता रहा
किस्सा था जीवन का
हिस्सा बन दोहराता रहा
कर्मों का सारा हर्जाना
पश्चात्ताप भरता रहा
घावों के निशानों पर
मरहम बन लगता रहा ।
मं शर्मा (रज़ा)
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हँसाता रूलाता रहा
चर्चाओं में आता रहा
किस्सा था जीवन का
हिस्सा बन दोहराता रहा
कर्मों का सारा हर्जाना
पश्चात्ताप भरता रहा
घावों के निशानों पर
मरहम बन लगता रहा ।
मं शर्मा (रज़ा)
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