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माना मुश्किलें बहुत हैं
ये बात समझ पाने में
बरसों बरस लग जाते हैं
खुद को समझा पाने में
खुद को गर पाना चाहूँ
गलत नहीं ये चाहने में
इतनी गुज़ारिश है मेरी
तुझे भूलूँ ना खुद को पाने में।
मं शर्मा (रज़ा)
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