
Share0 Bookmarks 10 Reads0 Likes
कदम कदम पर मेले थे
फिर भी हम अकेले थे
समय धारा में प्रवाह न था
बस लहरों के थपेड़े थे
दुनिया के नीरस मेले में
समय के इस रेलम पेले में
शुक्र है मुझे तुम मिल गए
गुमनामियों से बच गए ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments