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हर दफा मेरा ही ज़िक्र हुआ
हर दफा मेरी ही बात चली
हर बार इल्ज़ाम मेरे सर था
हर बार मुझी को सज़ा हुई
संभलता तो कैसे संभलता
हर बार मुझी पर गाज गिरी।
मं शर्मा (रज़ा)
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हर दफा मेरा ही ज़िक्र हुआ
हर दफा मेरी ही बात चली
हर बार इल्ज़ाम मेरे सर था
हर बार मुझी को सज़ा हुई
संभलता तो कैसे संभलता
हर बार मुझी पर गाज गिरी।
मं शर्मा (रज़ा)
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