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भूल कर भी भूला नहीं
समय के साथ गुजरा नहीं
एक किस्सा ऐसा भी
जीवन में ठहर गया कहीं
समय की धूल में दबा रहा
आँसुओं से सिंचता रहा
जीवन का हिस्सा बनकर
उग आया फिर यूँ ही ।
मं शर्मा (रज़ा)]
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