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मन में ग़र कोई दुविधा हो
बेहिचक होके कह डालो
संशय शेष रहने न पाए
मन की गिरह खोल डालो
बिन कहे और उलझेगा
देर करने से विलंब होगा
दबा रहा तो बढ़ जाएगा
लावा बन कर फूटेगा ।
मं शर्मा (रज़ा)
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