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केवल श्वासों की गंध थी
बड़ी घनेरी सी घुटन थी
खिड़की किवाड़ बंद सभी
अनगिनत दीवारें बुलंद थीं
खामोशी का चीत्कार भी
थक हार के सील गया था
खोल कर सभी दीवारें मैंने
धड़कनों को रोशन किया।
मं शर्मा( रज़ा)
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