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उम्र का कुसूर था
कि अक्ल गई थी मारी
दीवानगी हद से ज्यादा
होश पर रही हावी
इश्क कब गुज़र गया
हुई न कानो को खबर
होश को तब होश हुआ
जब जाती रही उमर ।
मं शर्मा (रज़ा)
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उम्र का कुसूर था
कि अक्ल गई थी मारी
दीवानगी हद से ज्यादा
होश पर रही हावी
इश्क कब गुज़र गया
हुई न कानो को खबर
होश को तब होश हुआ
जब जाती रही उमर ।
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