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दिग्भ्रमित सा सूरज फिर
दिवस भर फिरता रहा
अप्रतिम मिलन की चाह में
पहर पहर पिघलता रहा
चाहत क्यूँ है ज्ञात नहीं पर
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दिग्भ्रमित सा सूरज फिर
दिवस भर फिरता रहा
अप्रतिम मिलन की चाह में
पहर पहर पिघलता रहा
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