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तू धूप सा जलता रहा
मैं छाँव तेरी बनी रही
तू हरदम सुलगता रहा
मैं संग तेरे चलती रही।
मं शर्मा (रज़ा)
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तू धूप सा जलता रहा
मैं छाँव तेरी बनी रही
तू हरदम सुलगता रहा
मैं संग तेरे चलती रही।
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