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ओढ़ कर धुंध की चादर
धूप भी शरमा गई है
सर्द बर्फीली हवाओं ने
क्या कयामत ढाई है
माना कि तपते जीवन ने
राहत की गुहार लगाई थी
लेकिन ऐसी नहीं चाही थी
जैसी सर्दी चली आई है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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