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कुछ तो पीछे छूट रहा है

धीरे धीरे बिछड़ रहा है

भीतर से खाली हो रहा हूँ

धीमे धीमे मर रहा हूँ।


मिलना जुलना कम हुआ है

ख्वाबों का पीछा बंद हुआ है

दिल से सबको माफ कर रहा हूँ

जीते जी अमर हो रहा हूँ


मं शर्मा (रज़ा)

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