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माँ धरा थी
कभी कोख में
कभी गोद में
मुझे धारण करती रही
मेरी खुशियों में
मेरे सपनों में
मेरे दुखों में
खुद को जीती रही
अंत समय
कुछ खोजती सी
ह्रदय में मुझको धारे
चली गई।
मं शर्मा (रज़ा )
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