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मत रोको मन की उड़ानों को
भावनाओं के गगन में उड़ने दो
एहसास के दर को खुला छोड़ दो
कौन जाने कोई दस्तक दर्द में हो
बहुत गहरे निशान छोड़ते हैं हादसे
कौन जाने कब तलक धूमिल हो ।
मं शर्मा (रज़ा)
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