
Share0 Bookmarks 16 Reads0 Likes
खताएँ होती हैं
मुझसे हो गई शायद
रूठना लाज़िमी था
वो रूठ गई शायद
देर तक दर पे
दस्तक देता रहा
दरवाज़ा दिल का
उसके बंद था शायद।
मं शर्मा(रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
खताएँ होती हैं
मुझसे हो गई शायद
रूठना लाज़िमी था
वो रूठ गई शायद
देर तक दर पे
दस्तक देता रहा
दरवाज़ा दिल का
उसके बंद था शायद।
मं शर्मा(रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments