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दीवारों पर उग आईं दरारें
बढ़ने लगी हैं तकरारें
जान कर अनजान न बन
तबाही का सामान किया है
समय इशारा दे रहा है
घर बिखरने को हुआ है
दरकते पेड़ों से न पूछो
दर्द कहाँ कहाँ हुआ है।
मं शर्मा (रज़ा)
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