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दहलीज़ पर खड़ा

स्वागत करता दरबान हूँ

घर की औकात नहीं

बाहर ही पड़ा हूँ

सम्मान का भूखा

मैं एक पायदान हूँ


ज़मीन पर पड़े पड़े

धूल फांक रहा हूँ

कदमों तले दम तोड़ता

वजूद मिटा रहा हूँ

निष्कासित जीवन जीता

मैं एक पायदान हूँ।



मं शर्मा (रज़ा)

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