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धरती की धानी चुनर में
रंग बिरंगे फूल टँके हैं
भरमाने सबके मन को
सजे संवरे से झूम रहे हैं
बुरी नज़र कभी न रखना
इस चुनरी की गरिमा पर
महकाने को चहुँ दिशाएँ
निकली धरा सज धज कर।
मं शर्मा (रज़ा)
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