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चितवन तेरी चित में धारे
बारूँ दीया साँझ सकारे
पलक झपकूँ न एकपल प्यारे
जाने कब तू आन पुकारे
राह निहारूँ डगर बुहारूँ
मन ही मन हिय भरे हुलारे
बोलो कब लैं दरसन दोगे
कहुँ प्राण ही ना जाय सिधारे।
मं शर्मा (रज़ा)
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