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हम यादों के चिराग जलाये
तेरी लगन के उजाले में बैठे हैं
आना न आना तेरी मर्ज़ी कान्हा
हम तो जीवन निसार बैठे हैं ।
मं शर्मा (रज़ा)
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हम यादों के चिराग जलाये
तेरी लगन के उजाले में बैठे हैं
आना न आना तेरी मर्ज़ी कान्हा
हम तो जीवन निसार बैठे हैं ।
मं शर्मा (रज़ा)
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