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छोटी छोटी बातों के
पचड़े बड़े हैं
अपनों से छिपाने में
लफड़े बड़े हैं
कह कर भी किसी के
कहाँ पल्ले पड़े हैं
वैसे ही कितने अपने
गले पड़े हैं
छोटी सी जिंदगी के
नखरे बड़े हैं
जीने के भी अब तो
भाव बढ़े हैं।
मं शर्मा (रज़ा)
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