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लहलहाते वृक्षों को देखकर
माँ तेरा आँचल याद आया
पेड़ों की छाया में बैठ घड़ीभर
मैं छाँव तेरे दुलार सी पाया
तेरे आँचल की छाँव से बड़ा
दुनिया में कोई वरदान नहीं
दाता ने गढ़ा होगा तुझ को
माँ मेरा तो भगवान तू ही ।
मं शर्मा (रज़ा)
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