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चलते चलते थक जाओ तो

रात बन के ढल जाना

जीने की फिर चाहत हो तो

भोर बन कर उग आना


जीवन चक्र यूँ ही चलता है

चलना और चलते जाना

थमने का कोई काम नहीं

जीवन है विश्राम नहीं ।


मं शर्मा( रज़ा)

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