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कहीं खिली धूप सुनहरी

कहीं स्याह अंधेरा छाया है

भाग्य दुर्भाग्य कहने की बातें

क्या अंधेरा क्या उजियारा है

महल दुमहले हुआ करें शहर में

गली में आखिरी मकां तो मेरा है।


मं शर्मा (रज़ा)

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