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अस्त व्यस्त जीवन के सारे
लम्हे तितर बितर हुए
जीने को जो शेष बचे
यूँ ही बेतरतीब पड़ रहे
मौन ऐसा गहराया कि
आहट भी सुझाई न दे
धड़कनें बताती रहीं
प्राण अभी भी बच रहे।
मं शर्मा (रज़ा)
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अस्त व्यस्त जीवन के सारे
लम्हे तितर बितर हुए
जीने को जो शेष बचे
यूँ ही बेतरतीब पड़ रहे
मौन ऐसा गहराया कि
आहट भी सुझाई न दे
धड़कनें बताती रहीं
प्राण अभी भी बच रहे।
मं शर्मा (रज़ा)
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