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चोट भुला दी थी पहले ही

ज़ख्मों का भरना बाकी है


तुझसे मिलना मेरी खता थी

दिल को समझना बाकी है


तेरा जवाब मुझको पता है

बस तुझसे सुनना बाकी है


तुम संग जीना मुमकिन नहीं

यकीं खुद को दिलाना बाकी है ।



मं शर्मा (रज़ा)

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