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आज फिर फूल बनने का मन हुआ

तेरी राहों में बिछ जाने का मन हुआ

पतझड़ ने बहुत डराया था कभी

आज बहार बनके छाने का मन हुआ ।


मं शर्मा (रज़ा)

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