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अविराम चल रहा है चाँद
जाने कब से इस गगन में
चाहतों का बोझ भारी
जाने कब से छिपाए मन में
कुछ सफर सतत चलते हैं
खत्म कभी होते नहीं
चलते जाना मात्र विकल्प है
सफर रहता है जारी ।
मं शर्मा (रज़ा)।
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