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नीयत थी भरी हुई

सुकून का साथ था

महलों में गर्व पर

झोंपड़ों में पर्व था


दौलत को थी बेकली

अभाव निश्चिंत था

मैं अपने संस्कारों से

बेहद आश्वस्त था ।


मं शर्मा (रज़ा)

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