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उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले
हम पंछी थे भोले भाले
क्यों हम पर तू डाले ताले
ऐ इंसान कपटी मन वाले
बंधन हमको कभी न भाए
इसीलिए पंछी जीवन पाए
बस आज़ादी से उड़ना चाहें
थोड़ा सा आसमान चाहें।
मं शर्मा( रज़ा)
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