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जान कर अंजान न बन
खुद को यूँ झुठलाया न कर
पास बैठ दो बात कर
मुझ से यूँ शरमाया न कर
कुछ अपनी कह कुछ मेरी सुन
हसरतों को छिपाया न कर ।
मं शर्मा (रज़ा)
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जान कर अंजान न बन
खुद को यूँ झुठलाया न कर
पास बैठ दो बात कर
मुझ से यूँ शरमाया न कर
कुछ अपनी कह कुछ मेरी सुन
हसरतों को छिपाया न कर ।
मं शर्मा (रज़ा)
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