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एकदिन बिटिया बोली माँ तू
अब संभल कर रहा कर
सर्दी गर्मी से बचा कर
तुझ बिन कैसे जी पाऊँगी
थोड़ा तो तू समझा कर
संभल संभल कर जीने से
काल का अंदेशा न टल पाएगा
फिर भी ममता की खातिर
बिटिया का कहना माना है
मैंने संभल कर जीना ठाना है।
मं शर्मा (रज़ा)
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