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चीख चीख कर रोष बयां करती रही
लहरों के आवेश का अंदाजा न हुआ
चीर कर किनारों को जब बहा ले गई
तब भी अपने ही दर्द का मातम हुआ।
मं शर्मा (रज़ा)
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चीख चीख कर रोष बयां करती रही
लहरों के आवेश का अंदाजा न हुआ
चीर कर किनारों को जब बहा ले गई
तब भी अपने ही दर्द का मातम हुआ।
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