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आरंभ से अंत तक
अंत से अनंत तक
हर जगह विद्यमान हूँ
मैं सर्वव्यापी आनंद हूँ
जीवन के हर रंग में
लहरों की तरंग में
ह्रदय की उमंग में
मैं आनंदमयी आनंद हूँ
नफरत की बयार से
भेदभाव के व्यापार से
कोसों रहता दूर हूँ
मैं ही जीवन आनंद हूँ।
मं शर्मा( रज़ा)
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