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प्यासी धरा बारिश को तरसे
अब के बरस न अंबर गरजे
उमड़ घुमड़ जब बादल बरसे
प्यार की सुगंध से मिट्टी महके
दूर दूर से धरती को निहारे
व्यर्थ मिलन के प्रयत्न सारे
मन की प्यास बुझा लेते हैं
अंबर धरा बारिश के सहारे ।
मं शर्मा (रज़ा)
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