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दिल में कैद जज़बात कई
दबा रखे थे बड़ी तदबीरों से
बाँध कोई टूटा आज शायद
बह निकले दर्द धारों से
मन के साफ कोरे पन्नों पर
दर्द जड़ दिए अल्फाज़ों से
लगता है दर्द कुछ कम होगा
ज़ख्मों पर उड़ेली स्याही से।
मं शर्मा(रज़ा)
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