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समय के अलाव में चलो
मुरझाए रिश्तों को धधकाएँ
अहसासों को सुलगाकर
यादों का धुआँ उड़ाएँ
जीवन की सर्द शामों को
थोड़ी सी तपिश पहुँचाएँ
ठहरे हुए समय में आज
फिर से वही रवानी लाएँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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