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आग है
भूख की हो या
नफरत की
क्रोध की या
दुराग्रह की
झुलसाती ही है
आग है
बदले की हो या
दुर्भावना की
सत्ता की हो या
वर्चस्व की
जलाती ही है
आग है
जलाना हो कि
झुलसाना
प्रवृत्तिवश हो कि
नियतिवश
अपना कर्म करती है।
मं शर्मा (रज़ा)
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